Monday, March 11, 2019

महाराजा रणजीत सिंह कि कहानी। Story of Maharaja Ranjeet singh.

महाराजा रणजीत सिंह

सिख शासन शुरुआत करने में महाराजा रणजीत सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने लगभग अठारहवी सदी के अंत और उन्नीसवी सदी में अपना शासन शुरू किया, उनका शासन पंजाब प्रान्त में फैला हुआ था और उन्होंने दल खालसा नामक संगठन का नेतृत्व किया था। पंजाब के लोक जीवन और लोक कथाओं में महाराजा रणजीत सिंह से सम्बन्धित अनेक कथाएं कही व सुनी जाती है। इसमें से अधिकांश कहानियां उनकी उदारता, न्यायप्रियता और सभी धर्मो के प्रति सम्मान को लेकर प्रचलित है। उन्हें अपने जीवन में प्रजा का भरपूर प्यार मिला। अपने जीवन काल में ही वे अनेक लोक गाथाओं और जनश्रुतियों का केंद्र बन गये थे। रणजीत सिंह ने मिसलदार के रूप में अपना लोहा मनवा लिया था और अन्य मिसलदारों को हरा कर अपना राज्य बढ़ाना शुरू कर दिया था। पंजाब क्षेत्र के सभी इलाकों में उनका कब्ज़ा था।
रणजीत सिंह ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं और पेशावर समेत पश्तून क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। ऐसा पहली बार हुआ था कि पश्तूनो पर किसी गैर मुस्लिम ने राज किया हो। उसके बाद वह पेशावर, जम्मू कश्मीर और आनंदपुर पर भी अधिकार करने में सफल रहे।


महाराजा रणजीत सिंह का जन्म एवं शासन काल:


सन 1780 में गुजरांवाला, भारत अब के पाकिस्तान में सुकरचक्या मिसल (जागीर) के मुखिया महासिंह के घर हुआ। वो 12 वर्ष के थे जब उनके पिता का स्वर्गवास हो गया सन 1792 से 1797 तक की जागीर की देखभाल एक शासन परिषद् ने की। इस परिषद् में इनकी माता- सास और दीवान लखपतराय शामिल थे। सन 1797 में महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी जागीर का समस्त कार्यभार स्वयं संभाल लिया।
कुछ ज्ञाताओं के अनुसार कहा गया है कि 12 अप्रैल, 1801 को रणजीत सिंह को पंजाब का महाराजा का ताज मिला। जिस दिन उनको महाराजा घोषित किया गया, वह दिन बैसाखी का था। उस समय वह 20 साल के थे। 

महाराजा रणजीत सिंह से जुड़ी लोक कथाये:

पहली कथा:
एक मुसलमान खुशनवीस ने अनेक वर्षो की साधना और श्रम से कुरान शरीफ की एक अत्यंत सुन्दर प्रति सोने और चाँदी से बनी स्याही से तैयार की। उस प्रति को लेकर वह पंजाब और सिंध के अनेक नवाबो के पास गया, सभी ने उसके कार्य और कला की प्रशंसा की परन्तु कोई भी उस प्रति को खरीदने के लिए तैयार न हुआ। खुशनवीस उस प्रति का जो भी मूल्य मांगता था, वह सभी को अपनी सामर्थ्य से अधिक लगता था।
निराश होकर खुशनवीस लाहौर आया और महाराजा रणजीत सिंह के सेनापति से मिला, सेनापति ने उसके कार्य की बड़ी प्रशंसा की परन्तु इतना अधिक मूल्य देने में उसने खुद को असमर्थ पाया। महाराजा रणजीत सिंह ने भी यह बात सुनी और उस खुशनवीस को अपने पास बुलवाया, खुशनवीस ने कुरान शरीफ की वह प्रति महाराज को दिखाई।
महाराजा रणजीत सिंह ने बड़े सम्मान से उसे उठाकर अपने मस्तक में लगाया और वजीर को आज्ञा दी- "खुशनवीस को उतना धन दे दिया जाय, जितना वह चाहता है और कुरान शरीफ की इस प्रति को मेरे संग्रहालय में रख दिया जाय "।

दूसरी कथा:
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने 1845 में सिखों पर आक्रमण कर दिया। सिख सेना वीरतापूर्वक अंग्रेजों का मुकाबला कर रही थी। किन्तु सिख सेना के ही सेनापति ने विश्वासघात किया और मोर्चा छोड़कर लाहौर पलायन कर गया। इस कारण विजय के निकट पहुंचकर भी सिख सेना हार गई। अंग्रेजों ने सिखों से कोहिनूर हीरा ले लिया। लार्ड हार्डिंग ने इंग्लैण्ड की रानी विक्टोरिया को खुश करने के लिए कोहिनूर हीरा लंदन पहुंचा दिया, जो 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' द्वारा रानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया।


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