Saturday, March 16, 2019

मातंगीनी हज़रा : भारतीय स्वतंत्रता सेनानी। Matangini Hazra: Indian Freedom Fighter.

मातंगीनी हज़रा Matangini Hazra



मातंगीनी हजरा एक भारतीय क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। उन्हें "गांधी बुरी" के रूप में जाना जाता है। वंदेमातरम के उद्धघोष उस समय विवादों में रहता था क्योंकि बहुत से लोग बोलना नही चाहते थे। 29 सितंबर, 1942 को तमलुक पुलिस स्टेशन (पूर्वी मिदनापुर जिले के) के सामने ब्रिटिश भारतीय पुलिस ने उन्हें मार डाला।
मातंगिनी हाजरा का जन्म पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) मिदनापुर जिले के होगला ग्राम में एक अत्यन्त निर्धन परिवार में हुआ था। गरीबी के कारण लगभग 10 वर्ष की अवस्था में ही उनका विवाह ग्राम अलीनान के 62वर्षीय त्रिलोचन हाजरा से कर दिया गया जिनकी पहली पत्नी मर चुकी थी और बच्चे भी थे। तथा जब वो 18 वर्ष की हुई तो उनके पति की मृत्यु हो गयी। इस पर भी दुर्भाग्य यह था कि वो निःसन्तान ही विधवा हो गयीं। पति की पहली पत्नी से उत्पन्न पुत्र उन्हें नही चाहते थे अतः मातंगिनी एक अलग झोपड़ी में रहकर मजदूरी से जीवनयापन करने लगीं। 

मातंगीनी हज़रा का स्वाधीनता संघर्ष

जब वो 62 वर्ष की हुई तो उन्हें यह समझ मे आने लगा कि हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ है और पुरे भारत मे आजादी के संघर्ष चल रहे है अतः सन 1932 में गान्धी जी के नेतृत्व में देश भर में "सविनय अवज्ञा" स्वाधीनता आन्दोलन चला। वन्देमातरम् का घोष करते हुए जुलूस प्रतिदिन निकलते थे। जब ऐसा एक जुलूस मातंगिनी के घर के पास से निकला, तो उसने बंगाली परम्परा के अनुसार शंख ध्वनि से उसका स्वागत किया और जुलूस के साथ चल दी। वो जुलूस वालों कि मदत करती उन्हें पानी पिलाती तथा स्वाधीनता संग्राम में तन, मन, धन से संघर्ष करने की शपथ ली। उन्हें गिरिफ्तार भी किया गया और कई किलोमीटर चलने की सजा भी मिली। फिर वो लगातार स्वाधीनता आंदोलनों में शामिल हुई। नामक कानून के विरोध में गांधी जी के आंदोलन के शामिल हुई और गिरफतारी भी हुई उसमे उन्हें लगभग 6 महीनों की सजा भी हुई।
फिर तो वो और भी बढ़-चढ़ कर आंदोलन में भाग लेने लगी तथा उन्हें बहुत बड़ा जन समर्थन हासिल हुआ। उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि उनके साथ बहुत बड़ी संख्या में लोग साथ चलने और कुछ भी करने को तैयार हो जाते थे।


भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी सहभागिता 

भारत छोड़ो आंदोलन के एक भाग के रूप में, कांग्रेस के सदस्यों ने मिदनापुर जिले के विभिन्न पुलिस स्टेशनों और अन्य सरकारी कार्यालयों को अपने अधिकार में लेने की योजना बनाई। इस जिले में ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने और एक स्वतंत्र भारतीय राज्य की स्थापना में एक कदम था। मातंगिनी हजरा, जो 72 वर्ष की थी जब उस समय के वर्षों में, थाने पर कब्जा करने के उद्देश्य से छह हजार समर्थकों की जुलूस, ज्यादातर महिला स्वयंसेवकों का नेतृत्व किया। जब जुलूस शहर केबाहरी इलाके में पहुंच गया। उनके एक हाथ मे तिरंगा झंडा था। जाहिर है उसने आगे कदम रखा था और पुलिस को अपील की थी कि वह भीड़ पर शूट न करें।
मातंगिनी ने तिरंगा झंडा अपने हाथ में ले लिया। लोग उनकी ललकार सुनकर फिर से एकत्र हो गए। अंग्रेज़ी सेना ने चेतावनी दी और फिर गोली चला दी। पहली गोलीमातंगिनी के पैर में लगी। जब वह फिर भी आगे बढ़ती गईं तो उनके हाथ को निशाना बनाया गया। लेकिन उन्होंने तिरंगा फिर भी नहीं छोड़ा। इस पर तीसरी गोली उनके सीने परमारी गई और इस तरह एक अज्ञात नारी 'भारत माता' के चरणों मे शहीद हो गई।

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