Friday, April 5, 2019

महाराजा भोज का इतिहास। History of Raja Bhoj.

राजा भोज Raja Bhoj






महाराजा भोज इतिहास:

राजा भोज प्रसिद्ध मुंजराज के भतीजे व सिंधुराज के पुत्र थे। उनकी पत्नी का नाम लीलावती था। परमारवंशीय राजाओं ने मालवा के एक नगर धार को अपनी राजधानी बनाकर 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक राज्य किया था। उनके ही वंश में हुए परमार वंश के सबसे महान अधिपति महाराजा भोज ने धार में 1000 ईसवीं से 1055 ईसवीं तक शासन किया। मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक गौरव के जो स्मारक हमारे पास हैं, उनमें से अधिकांश राजा भोज की देन हैं, चाहे विश्वप्रसिद्ध भोजपुर मंदिर हो या विश्वभर के शिवभक्तों के श्रद्धा के केंद्र उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर, धार की भोजशाला हो या भोपाल का विशाल तालाब- ये सभी राजा भोज के सृजनशील व्यक्तित्व की देन हैं। उन्होंने जहां भोज नगरी (वर्तमान भोपाल) की स्थापना की वहीं धार, उज्जैन और विदिशा जैसी प्रसिद्ध नगरियों को नया स्वरूप दिया। उन्होंने केदारनाथ, रामेश्वरम, सोमनाथ, मुण्डीर आदि मंदिर भी बनवाए, जो हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर हैं।

कई महान ग्रंथों के रचयिता थे राजा:

राजा भोज ने काव्यशास्त्र और व्याकरण का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। उन्होंने अपने जीवनकाल के दौरान बहुत सी किताबें लिखी. राजा से जुड़ी मान्यताओं के मुताबिक उन्हें 64 प्रकार की सिद्धियां प्राप्त थी, जिन्हें लेकर उन्होंने अलग-अलग विषयों पर करीब 84 ग्रंथो की रचना की।
इनमे, आयुर्वेद, व्याकरण, वास्तुशिल्प, ज्योतिष, संगीत, विज्ञान, योगशास्त्र, दर्शन, कला और राजनितिशास्त्र प्रमुख हैं। इसके साथ-साथ सरस्वती कंठाभरण, सिद्वांत संग्रह, राजकार्तड,विद्या विनोद जैसे ग्रंथ भी इन्हीं की देन है।
खैर, कहते न कि कोई कितना भी अच्छा क्यों न हो, एक न एक दिन अंत सभी का होता ही है, फिर क्या राजा और क्या प्रजा। 
अपने शासनकाल के अंतिम समय में राजा को युद्ध में पराजय का मुंह देखना पड़ा। एक युद्ध के दौरान राजा भोज पर गुजरात के राजा चालुक्य और चेदि नरेश की सेनाओं ने संयुक्त रुप से हमला कर दिया। हालांकि, इस युद्ध में भी राजा भोज व उनकी सेना बड़ी बहादुरी से लड़ी थी. मगर भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया और वह इस युद्ध में हार गए।

एक कहावत "कहां राजा भोज कहां गंगू तेली" की कहानी:

राजा भोज ने भोजशाला तो बनाई ही मगर वो आज भी जन जन में जाने जाते हैं एक कहावत के रूप में "कहां राजा भोज कहां गंगू तेली"। किन्तु इस कहावत में गंगू तेली नहीं अपितु "गांगेय तैलंग" हैं। गंगू अर्थात् गांगेय कलचुरि नरेश और तेली अर्थात् चालुका नरेश तैलय दोनों मिलकर भी राजा भोज को नहीं हरा पाए थे।
ये दक्षिण के राजा थे। और इन्होंने धार नगरी पर आक्रमण किया था मगर मुंह की खानी पड़ी तो धार के लोगों ने ही हंसी उड़ाई कि "कहां राजा भोज कहां गांगेय तैलंग" । गांगेय तैलंग का ही विकृत रूप है "गंगू तेली" । जो आज "कहां राजा भोज कहां गंगू तेली"  रूप में प्रसिद्ध है ।
धार शहर में पहाड़ी पर तेली की लाट रखी हैं, कहा जाता है कि राजा भोज पर हमला करने आए तेलंगाना के राजा इन लोहे की लाट को यहीं छोड़ गए और इसलिए इन्हें तेली की लाट कहा जाता है।
"कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली" कहावत का यही असली रहस्य हैं । इसी पर चल पड़ी थी यह कहावत।

राजा भोज की मृत्यु :

अपने शासन काल के अंतिम वर्षों में भोज परमार को पराजय का अपयश भोगना पड़ा। गुजरात के चालुक्य राजा तथा चेदि नरेश की संयुक्त सेनाओं ने लगभग 1060 ई. में भोज परमार को पराजित कर दिया। इसके बाद ही उसकी मृत्यु हो गई।

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