बुल्ले शाह Bulle Shah:
सय्यद अब्दुल्ला शाह क़ादरी जिन्हें बुल्ले शाह के नाम से भी जाना जाता है एक पंजाबी दार्शनिक एवं संत थे। बुल्ले शाह का मूल नाम अब्दुल्लाशाह था। बुल्ले शाह धार्मिक प्रवत्ति के थे। उन्होंने सूफी धर्म ग्रंथों का भीगहरा अध्ययन किया था। साधना से बुल्ले ने इतनी ताकत हासिल कर लीकि अधपके फलों को पेड़ से बिना छुए गिरा दे। पर बुल्ले को तलाश थी इकऐसे मुरशद की जो उसे खुदा से मिला दे। शायद यही कारण है कि उन्हें आधुनिक इतिहास से दूर रखा गया है।
बुल्ले शाह की कविता "बुल्ला की जाना" को रब्बी शेरगिल ने एक रॉक गानेके तौर पर गाया। इनकी कविता का प्रयोग पाकिस्तानी फ़िल्म "ख़ुदा के लिये" के गाने"बन्दया हो" में किया गया था। इनकी कविता का प्रयोग बॉलीवुड फ़िल्म रॉकस्टार के गाने "कतया करूँ" में किया गया था। फ़िल्म दिल से के गाने "छइयाँ छइयाँ" के बोल इनकी काफ़ी "तेरेइश्कनचाया कर थैया थैया" पर आधारित थे।
बुल्ले शाह का जीवन Life of Bulle Shah:
इनके जीवन में अलग अलग मतभेद है। इनका जन्म 1680 में उच गीलानियो में हुआ। इनके पिता शाह मुहम्मद थे जिन्हें अरबी, फारसी और कुरान शरीफ का अच्छा ज्ञान था। वह आजीविका की खोज में गीलानिया छोड़ कर परिवार सहित कसूर (पाकिस्तान) के एक गाँव में बस गए। उस समय बुल्ले शाह की आयु छे वर्ष की थी, बुल्ले शाह जीवन भर कसूर में ही रहे। पिता के नेक जीवन के कारण उन्हें दरवेश कहकर आदर दिया जाता था। पिता के ऐसे व्यक्तित्व का प्रभाव बुल्ले शाह पर भी पड़ा।
इनके पिता मस्जिद के मौलवी थे, वे सैयद जाति से सम्बन्ध रखते थे। इनकी उच्च शिक्षा कसूर में ही हुई। इनके उस्ताद हजरत गुलाम मुर्तजा सरीखे ख्यातनामा थे। अरबी, फारसी के विद्वान होने के साथ साथ आपने इस्लामी और सूफी धर्म ग्रंथो का भी गहरा अध्ययन किया। उनके पहले आध्यात्मिक गुरु संत सूफी मुर्शिद शाह इनायत अली थे, वे लाहौर से थे। बुल्ले शाह को मुर्शिद से आध्यामिक ज्ञान रूपी खाजने की प्राप्ति हुई और उन्हें उनकी करिश्माई ताकतों के कारण पहचाना जाता था। आगे चलकर इनका नाम बुल्ला शाह या बुल्ले शाह हो गया। प्यार से इन्हें साईं बुल्ले शाह या बुल्ला कहते।
परमात्मा की दर्शन की तड़प इन्हें फकीर हजरत शाह कादरी के द्वार पर खींच लाई। हजरत इनायत शाह का डेरा लाहौर में था, वे जाति से अराई थे। अराई लोग खेती-बाड़ी, बागबानी और साग-सब्जी की खेती करते थे। बुल्ले शाह के परिवार वाले इस बात से दुखी थे कि बुल्ले शाह ने निम्न जाति के इनायत शाह को अपना गुरु बनाया है। उन्होंने समझाने का बहुत यत्न किया परन्तु बुल्ले शाह जी अपने निर्णय से टस से मस न हुए।
बुल्ले शाह का असली नाम अब्दुल्ला शाह था। उन्होंने शुरुआतीशिक्षा अपने पिता से ग्रहण की थी और उच्च शिक्षा क़सूर में ख़्वाजा ग़ुलाममुर्तज़ा से ली थी। पंजाबी कवि वारिस शाह ने भी ख़्वाजा ग़ुलाम मुर्तज़ा सेही शिक्षा ली थी उनके सूफ़ी गुरु इनायत शाह थे। बुल्ले शाह की मृत्यु1757 से 1759 के बीच क़सूर में हुई थी। बुल्ले शाह के बहुत से परिवारजनों ने उनका शाह इनायत का चेला बनने का विरोध किया था क्योंकिबुल्ले शाह का परिवार पैग़म्बर मुहम्मद का वंशज होने की वजह से ऊँचीसैय्यद जात का था जबकि शाह इनायत जात से आराइन थे, जिन्हें निचलीजात माना जाता था। लेकिन बुल्ले शाह इस विरोध के बावजूद शाह इनायतसे जुड़े रहे और अपनी एक कविता में उन्होंने कहा:
संस्कृति पर प्रभाव
2007 में इनके देहांत की 250वीं वर्षगाँठ मनाने के लिये क़सूर शहर में एकलाख से अधिक लोग एकत्रित हुए थे।
सैकड़ों वर्ष बीतने के बाद भी बाबा बुल्ले शाह की रचनाएँ अमर बनी हुई हैं।आधुनिक समय के कई कलाकारों ने कई आधुनिक रूपों में भी उनकीरचनाओं को प्रस्तुत किया है।
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