दारा शूकोह Dara Shukoh:
मुगल प्रिंस दारा शूकोह |
दारा शूकोह मुगल बादशाह साहजहां और मुमताज़ महल का बड़ा(जेष्ठ) पुत्र था, जिसे साहजहां ने अपने जीतेजी ही अपना उत्तराधिकारी बनाया था परंतु उसके विचारों से भाईओं और मुस्लिम विचारकों में मतभेद था। बाल्यकाल से ही दारा शूकोह का अध्यात्म के प्रति लगाव था। इसलिए कुछ कट्टर मुसलमान उसे धर्मद्रोही मानते थे, तथापि दारा ने इस्लाम की मुख्य भूमि को नहीं छोड़ा। उसे धर्मद्रोही करार दिए जाने का मुख्य कारण उसकी सर्व-धर्म-सम्मिश्रण की प्रवृत्ति थी, जिससे इस्लाम की स्थिति के क्षीण होने का भय था। दारा शूकोह का जन्म 1615 में मृत्यु 1959 दिल्ली में औरंगजेब के द्वारा हुई।
दारा शूकोह का व्यक्तित्व:
इतिहासकार बर्नीयर ने लिखा है कि दारा में अच्छे गुणों की कमी नहीं थी। वह मितभाषी , हाजिर जबाबी, नम्र और अतयन्त उदार व्यक्ति था। वह अपने को बहुत बुद्धिमान और समझदार समझता था। लोग उससे डरते थे। उसे सही सलाह देने से डरते थे। उसके और भाई पसन्द नहीं करते थे।दारा शूकोह बौद्धिक दृष्टि से अपने परदादा अकबर के गुणों व आदर्शों का अनुयायी था। वह इसी से पे्ररित होकर तालमद , बाइबिल, हिन्दू बेदान्त आदि दर्शनों का उसने अध्ययन कर रखा था। जिन धार्मिक तथ्यों में मतभिन्नता थी उनमें समन्वय करके वह बीच का रास्ता निकालना अपना मुख्य उद्देश्य बना रखा था। वह हिन्दू योगी लालदास तथा मुस्लिम फकीर सरमद का समान रूप से शिष्य था। वह दोनों के सदविचारों को ग्रहण किया था। वह अपना क्रोध जल्द ही जल्द शान्त कर लेता था। 1653 में उसकी कांधार में पराजय हुई फिर भी शाहजहां उसे अपने उत्तराधिकारी के रूप में देखता था।
दारा शूकोह का धार्मिक व दार्शनिक विचारक:
वह सभी धर्मों का सम्मान करता था। हिन्दू व ईसाई धर्म में भी रूचि थी। इससे नाराज होकर मुस्लिम कट्टरपंथियों ने उस पर इस्लाम के प्रति अनास्था फैलाने का आरोप लगया था। वह सूफी और तौहीद का जिज्ञासु और संत महात्माओं से मिलता रहता था। एसे अनेक चित्र मिले हैं जिसमें दारा हिन्दू सन्यासियों और मुसलमान फकीरों के संगत में रहा है। वह एक कुशल लेखक भी था। उसने ’’सफीनात अल औलिया’’ व ’’सकीनात अल औलिया’’ सूफी संतो पर लिखी है। उसने ’’रिसाला ए हकनुमा’’ और ’’ तारीकात ए हकीकत’’ सूफी की दार्शनिक पुस्तकें लिखी है। उसकी कविता संग्रह ’’अक्सीर ए आजम ’’ में सर्वेश्वरवादी प्रकृति का बोध होता है। धर्म और वैराग्य के लिए उसने ’’ हसनात अल आरिफीन’’ और ’’मुकालम ए बाबालाल ओ दाराशिकोह’’ पुस्तकें लिखी है। वेदान्त और सूफीबाद की तुलना उसके ’’ मजमा अल बहरेन’’ ग्रंथ की रचना की है। उसने 52 उपनिषदों का अनुवाद ’’ सीर ए अकबर’’ ग्रंथ में किया।
दारा शूकोह का सर्वधर्म के प्रति समभाव रखना ही उसके मृत्यु का कारण बना। उसके विचारों से उसके भाईओं का विशेषकर औरंगजेब के मतभेद था। कई इतिहासकार उसे गुणवान और वीर नही बताते क्योंकि वह अपने पिता के साथ रहना चाहता था और जब साहजहां ने विभाजन करके सब को अलग अलग छेत्र दे दिए तब भी वो पिता के साथ रहता था जबकि उसके भाई सीमा और सैन्य शक्ति बढ़ाने में लगे रहते थे। यही कारण है कि जब साहजहां बीमार पड़े तो औरंगजेब ने फायदा उठाया और दारा शूकोह को पराजित किया।
No comments:
Post a Comment